अपने गांव से गोरखपुर और गोरखपुर से अपने गांव
अपने गाँव से गोरखपुर और गोरखपुर से अपने गाँव
(१) है लगता चक्कर पे चक्कर
हो वो मनुष्य चाहे हो खच्चर
एक दूसरे पर अटकी हैं
सब दुनिया वालो कि नांव
अपने गाँव से गोरखपुर और गोरखपुर से अपने गाँव
(२) बनने को तो सड़क बन रहा
जो हुआ नहीं वो इतिहास ठन रहा
अपने घर से जनपद तक पहुचो
अब कही नहीं पेडो़ का छावं
अपने गाँव से गोरखपुर और गोरखपुर से अपने गाँव
(३) नई उर्जा को दिल से भरते
सुबह सुबह सब लोग निकलते
कंकड़ ,किचड,मिट्टी और धूल में
थक जाते हैं हर नाज़ुक पाव
अपने गाँव से गोरखपुर और गोरखपुर से अपने गाँव
(४) सुबह निकलते मस्त कलंडर
फिर आते घर पर बन के बन्दर
रोड़ पे गड्ढो का क्या कहना
हर रोज़ नया मिलता है घाव
अपने गाँव से गोरखपुर और गोरखपुर से अपने गाँव
(५)जब पहुचो तब साहब चिल्लाते
हरदम काहै लेट तुम आते
सब सुनते सिर नीचे करके
फिर कहते हैं बताओ काम
अपने गाँव से गोरखपुर और गोरखपुर से अपने गाँव
(६) कीचड़ रबड़ी को फेल कर रहा
बारिश भी खूब झमेल कर रहा
गिर गए तो वापस घर आना है
कुछ ना होगा कितोनो चिल्लाओ
अपने गांव से गोरखपुर और गोरखपुर से अपने गांव
लेखक _नादान कौशल ????