अपने ग़म का शिकबा नहीं है
तेरे होठों पे जो शाइस्ता हंसी है
मुझे अपने ग़म का शिक़बा नहीं है
तेरे बारे में सोचा है बहुत कुछ मैंने
तेरे बगैर तो कुछ भी सोचा नहीं है
फक़त तुम्हे ही हमराज़ समझा है
और किसी पे भी भरोसा नहीं है
दिल की हर दीवार पे जो नाम लिखा है
वो हाथ की लकीरों में लिखा नहीं है
दिल के मसाइल बहुत संगीन होते हैं
इश्क़ कोई हंसी मज़ाक तो होता नहीं है
बहुत करते हो “अर्श” तमन्ना लैला की
हाल मजनू का तुमने क्या देखा नहीं है