” अपने कहीं मिले ” !!
गीत
कहीं बाग हैं सूने ,
कहीं प्रसून खिले !
मिले गले हरियाली ,
खुशबू वहीं पले !!
अनुबंधों में सबके ,
रिश्ते कसे लगे !
पाना था कुछ ही को ,
बाकी गये ठगे !
कसक सभी को होती ,
अपने कहीं मिले!!
भाये महक सुहानी ,
बंधन कसे कसे !
रूप रंग का मद भी ,
बहुधा यहां डसे !
कौन करे परवाह ,
गढ़ते रहो किले !!
हिलते लगे धरातल ,
बिखरे से विश्वास !
झूले सदा पालने ,
वही टूटती आस !
खुश रहना है रह लो ,
खत्म न होय गिले !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
फरीदाबाद