अपने कलम को कहीं तो विराम दो
अपने कलम को कहीं तो विराम दो,
क्यों उलझा रहे हो इसे,
दुनिया के झंझटों में,
क्यों घसीट रहें हों इसे,
इनके बईमानी के राहों पे,
कदर इस से ज्यादा शाय़द है,
तलवारों का,
अब तो बोलो रुक जाने उसे,
कुछ रक्षा करे वह,
अपने और पन्नों के प्यार का,
कम से कम बचा ले उसे हि,
जो लिखा है उसने इतिहास में।
अपने कलम को कहीं तो रोको,
कोई तो एक राह दिखा दो उसे,
कुछ पद का भेद बता कर,
कुछ गध का कर लें निर्माण,
बना लें जब वह एक मकान किताब का,
फिर तो रोक लो उसे,
मकान कि आख़िरी इट पे।
अरे कहीं तो विराम दो अपने कलम को,
क्या अनजान के तरह यह बढ़ते हि जाएगा,
मालूम होता पता नहीं है इसे,
अपनी मंजिल का,
बाबरे कि तरह भागता जाता है,
कुछ और रहस्य बता दो,
इसे इसके जीवन का लक्ष्य बता दो,
थोड़ा कहो थम जाने को,
और अपनी कर को आराम देन को।