अपनी सोच का शब्द मत दो
किसी ने प्रेम लिखा
पर उसका दांपत्य जीवन
दुखों से भरा था
लोगों ने उसके लेखन से
उसका चरित्र तौल दिया ,
किसी ने दर्द लिखा
सच में उसको अपनों से
बहुत दर्द मिला था
लोगों ने उसके लेखन को
प्रश्नों से बींध दिया ,
किसी ने अध्यात्म लिखा
अपार चिंतन करके
ख़ुद को उससे आत्मसात किया
लोगों ने उसके लेखन को
सम्मान नहीं दिया ,
किसी ने दूसरे का चोरी करके लिखा
अपना कहकर उसको
सबके आगे पेश किया
लोगों ने चाटुकारिता में
वाह वाह किया ,
लोग आंखों में पट्टी बांध कर
हाथ में तराज़ू लेते हैं
सही ग़लत का फ़र्क देख नहीं पाते
बस अपने हिसाब से
फैसला सुनाते हैं ,
अरे ! उन शब्दों का बारीकी से मर्म समझो
फिर उनके लेखनी की
आलोचना या तारीफ दो
लेकिन उनकी लेखनी को
अपनी सोच का शब्द मत दो ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा )