अपनी शक्ति पहचानो
रचना नंबर (22)
अपनी शक्ति पहचानो
निर्भया ! अब जागो
डरो नहीं, तुम उठो
अपनी शक्ति पहचानो
कब तलक दामिनी सी
अपना मुँह छुपाओगी
कोई राम-हनुमान सा
नहीं आएगा बचाने को
वो वानर सेना भी
तुम बना नहीं पाओगी
कृष्ण भी चीर न बढ़ाएगा
राम के रहते हुए भी
हरी गई थी माते सीता
दुःशासनी दुनिया में
अंधे तो थे ही सब
अब तो सारे के सारे
बहरे गूँगे भी हो गए हैं
मित्र रिश्तेदार फसे
पासों की कुचालों में
तेरे अपने भी आज
तमाशबीन हो गए हैं
गांडीव उठा पाओगी ?
चक्र सुदर्शन विष्णु का
कहाँ से लाओगी तुम ?
तुम्हें ही बनना है अब
दुर्गा पद्मिनी व लक्ष्मी
खिलजी फिरंगियों के
तुम्हें छक्के छुड़ाना है
अस्मत ख़ुद बचाना है
जौहर रचाना नहीं है
तुम्हें जुनून दिखाना है
फोगाट बहनों वाले
दाव पेंच लगाना है
मेरीकॉम मुक्कों के
प्रहार भी बरसाना है
बन जाओ फ़ौलादी
सीख लो सारे पैतरे
जूडो कराटे की सारी
चालों को अपनाना है
देवियों सी शक्तिशाली
बनकर के दिखाना है
स्वरचित
सरला मेहता
स्वरचित