अपनी लेखनी नवापुरा के नाम ( कविता)
निर्मल है मेरा गाँव नवापुरा ध्वेचा
रहते हैं साथी संगी मिलजुल कर
जब कोई वार त्योहार हो
एकत्र हो जाते है गाँव के चौहटे
गर्व से कहता हूं जहां खुशियों का है संगम
वहाँ है मेरा गांव नवापुरा ध्वेचा
दो भागों में बंटा है क्षेत्र
पूर्व में उगमणा है तो पश्चिम में आतमणा है
लेकिन दोनों ही अलग नहीं है,
एक ही थैली के है चट्टे-बट्टे
कैसे करुँ नवापुरा गाँव का व्याख्यान
जितना कहता हूँ भर-भर के और आता है
यहां के लोग हैं सीधे सादे
रखते मतलब अपने काम से
एक दूसरे के आते हैं काम
इनका ह्रदय है विशाल
अजनबीयों का भी करते हैं सत्कार
दूर से आए हुए लोगों को भी दे देते हैं सहारा
सुख दुख में रहते हैं साथ
कैसे करूं नवापुरा के सज्जनों का व्याख्यान
जितना कहता हूं भर भर के और आता है
यहां की मिट्टी है उपजाऊपन
कण-कण में बसती हैं खुशबू
जीरा,इसबगोल,बाजरा,अरंडी, सरसों और गेहूं यहां की है मुख्य फसलें
कैसे करूं नवापुरा की फसलों का व्याख्यान
जितना कहता हूं भर भर के और आता है ।
कवि : प्रवीण सैन नवापुरा ध्वेचा
बागोड़ा (जालोर)