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10 Jan 2021 · 1 min read

अपनी डिक्शनरी से ही गायब रविवार

वो पूछ रहे थे मर्ज मेरा क्या जवाब दूँगा
उसकी बज्म में नज़्म से यह जवाब दूँगा

अपनी आँख मे दर्द का समंदर छुपाए हूँ
कहाँ से लाकर खुशी की मैं किताब दूँगा

स्टालिन के स्टाइल की मूँछ रखता मैं तो
जाने कब उसको हाथ से मैं गुलाब दूँगा

इस नोकरी में हम परवाना बनना भूले
मिले कभी सरकार तो कुछ सवाल दूँगा

सत्ता की गलियों में हमें गालियाँ क्यों
नहीं चमचागिरी में लाकर शराब दूँगा

फ़ौजी हूँ या पोलिस वाला यहाँ पर मैं
कहाँ तक अवकाश के मैं हिसाब दूँगा

अपनी डिक्शनरी से ही गायब रविवार
बच्चों को जाकर के क्या मिसाल दूँगा

अशोक सपड़ा दिल्ली से
9968237538

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