अपनी ज़िक्र पर
न देखो यूँ शक की नजरों से, अपनी ज़िक्र पर
सितमगर नहीं इश्क़ में, नाज़ अपनी फ़िक्र पर
तेरे आने से फ़िज़ा में इश्क़-ए- मुश्क छा जाती
अब कहाँ तलाशूॅं वो खुशबू, यकीं नहीं इत्र पर।
न देखो यूँ शक की नजरों से, अपनी ज़िक्र पर
सितमगर नहीं इश्क़ में, नाज़ अपनी फ़िक्र पर
तेरे आने से फ़िज़ा में इश्क़-ए- मुश्क छा जाती
अब कहाँ तलाशूॅं वो खुशबू, यकीं नहीं इत्र पर।