अपनी खुशी की खातिर।
अपनी खुशी की खातिर ,मानव जाने क्या क्या करता है। अपने मन की शांति के लिए, क्यों बलि का बकरा बनाता है।प्रकृति का ध्यान नही रखता है।अपनी मौज मनाने को, पौधों को काटा करता है। नही पड़ोसी का,ध्यान रखता है।अपना जन्मदिन मनाने को, मुर्गे की बलि चढ़ाता है।अपनी खुशी मनाने को जाने क्या क्या करता है।न धर्म समझता,न कर्म समझता है। अपने को बुद्धि मान समझता रहता है।अपनी खुशी मनाने को , मानव क्या क्या करता रहता है।