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27 Oct 2024 · 1 min read

अपनी आंखों को मींच लेते हैं।

अपनी आंखों को मींच लेते हैं।
धूल खुद पे उलीच लेते हैं।

सामना सच का कर नहीं पाते ,
आंख हक़ीक़त से मींच लेते हैं।

सूखते ही ख़्याल की डाली ,
तेरी यादों से सींच लेते हैं ।

बाकी रह जाए याद में बाकी,
अपनी तस्वीर खींच लेते हैं ।

याद जब भी तुम्हारी आती है,
खुद को बाहों में भींच लेते हैं।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद

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