अपनी आंखों को मींच लेते हैं।
अपनी आंखों को मींच लेते हैं।
धूल खुद पे उलीच लेते हैं।
सामना सच का कर नहीं पाते ,
आंख हक़ीक़त से मींच लेते हैं।
सूखते ही ख़्याल की डाली ,
तेरी यादों से सींच लेते हैं ।
बाकी रह जाए याद में बाकी,
अपनी तस्वीर खींच लेते हैं ।
याद जब भी तुम्हारी आती है,
खुद को बाहों में भींच लेते हैं।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद