अपनी अपनी मर्जी
अपनी अपनी मर्जी ।
अपना अपना मन ।
बदली के छा जाने से ,
आता नही सावन ।
धरती भींगे वर्षा बूंदों से ,
भींगे न फिर भी मन ।
फूलों के खिल जाने से ,
खिलता नही गुलशन ।
तप्त धरा अंगारों सी ,
शीतल फिर भी रही पवन ।
मधु मास के आने से ,
आता नही यौवन ।
जन्मा जीवन की खातिर ,
लेकर जन्मों के बंधन ।
एक राह रुक जाने से ,
रुका नही जीवन ।
…. विवेक दुबे”निश्चल”@….