अपना सफ़र है
अपना अपना सबका सफ़र है।
कोई राह में,कोई मंजिल पर है।
कैसे ढूंढे हमउड़ चुके परिंदों को ,
न कोई निशां,बस खाली शज़र है।
बेताब धड़कने बता रही हैं पता,
सनम नज़दीक नही नजदीकतर है।
वक्त के साथ ये ज़ख्म भर जाएगा,
तेरे साथ तेरा खुदा रहबर है।
मैं चुप रहूं, तो चीखती उठे दीवारें
मेरी खामोशी इसलिए मुख्तसर है।
सुरिंदर कौर