‘अपना पराया’
‘अपना पराया’
कौन अपना है,कौन पराया,
बिन विपदा, कोई जान न पाया।
जो मन को अपने भा जाए,
जो संकट में काम आ जाए,
धूप में छाँव जो बन जाए,
शहर में गाँव वो बन जाए,
है वही अपना, ना समझ पराया,
बिन विपदा, कोई जान न पाया।
जब वक्त पड़े दौड़ा आ जाए,
उलझी उलझन सुलझा जाए,
उचित अनुचित जो समझा जाए,
मिलने से जो खुश हो जाए,
कभी हमसे जो, रूठ न पाया,
बिन विपदा, कोई जान न पाया।
मन का मौन जो तक जाए,
चेहरे पर दुख को भी पढ़ पाए।
हो पीड़ा जब मलहम बन जाए
बिखरा जीवन जो बाग बनाए।
जानोे उसे अपना, वो नहीं पराया,
बिन विपदा, कोई जान न पाया।