अपना घर
बचपन में हर लड़की से कहा जाता…
अपने घर जाना तो ऐसा करना
अपने घर जाना तो वैसा करना ,
माँ के घर से अपने घर आ गये
अपने इस घर में गच्चा खा गये ,
अपने इस घर में सब कुछ था सहना
अपने ही घर को अपना नही था कहना ,
अपना कहने पर तूफानी बवंडर था
ताने सुन सुन कर आँखों में समंदर था ,
अपना घर सोच कर इसको सजाते रहे
दुसरों के आगे झूठ मूठ का इतराते रहे ,
मन नही चाहता था स्वीकारना इसको
अपना कह बोला झूठ किसको किसको ,
माँ की बातों को मन से लगा लिया था
दुसरे के घर को दिल से सटा लिया था ,
ना वो घर अपना था ना ये घर अपना है
अपना घर तो बस एक सुनहरा सपना है ,
छोटे थे तो गुड़ियों का भी घर हम बनाते
काश उस पर अपनी नेम प्लेट लगा आते ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 15/07/2020 )