अपना उल्लू सीधा करना
खाना पीना और खिलाना
यही चलन ही यही जमाना
भोलेपन का लाभ उठाना
बल के आगे दुम हिलाना
उसको भावे वही दिखाना
चाहे उसका पानी भरना
जैसे भी हो कैसे भी हो
अपना उल्लू सीधा करना।
चला गया अब वह जमाना
जहाँ हृदय में प्रेम भरा था।
परोपकार के भाव जहां थे
और मदद का हाथ बढ़ाना
आज कहां का रिश्ता नाता
मनुष्यता अभी कहां रही है
इसी चाहत में लगे हुए हैं
अपना उल्लू सीधा करना।
-विष्णु प्रसाद ‘पाँचोटिया’