अन्याय करने से ज्यादा अन्याय सहना बुरा है
शीर्षक– अन्याय करने से ज्यादा अन्याय सहना बुरा है
ए वक्त तू तो गुजर चुका है
सालों सालों के अंतराल में
तू फिर गुजरेगा
तू गुजरता जायेगा
सदियों सदियों के अंतराल में
ए वक्त तू गुजर तो गया
अपने साथ वो मनहूस वक्त भी ले गया
जहां कोई नन्हा बालक बालिका
जहां कोई अबला नारी जानवरों की भांति किसी शराबी पुरूष से पिट रही थी
वो घाव भी ले गया जो कल तक हरे थे उन मासूमों के ज़ख्मों पर जो पड़े थे
ए गुजरे हुए वक्त
तूने वो घाव तो भरे जो तुझे दिखाई दिए
लेकिन उन घावों का क्या
जो किसी अपनों ने किए उस सुकोमल मन पर किए अनगिनत बार किए
तू गुजर तो रहा है वक्त
लेकिन वो घाव आज भी ताजे हैं
आज़ भी उन पीड़ितों के मन मस्तिष्क पर विराजे हैं
ए वक्त तू तो जानता है
मन मस्तिष्क के घाव भले ही दिखाई न देते हों
या भले ही सुनाई न देते हों
लेकिन आज जो घाव शरीर पर पड़ते हैं
वहीं घाव सूखने के बाद कल मन पर पड़ते हैं
पीड़ित कोई भी हो सकता है
ज़ख्मी कोई भी किसी को कर सकता है
बालपन के घाव कभी नहीं भरते हैं
जो प्रहार शरीर को हुआ वो कल जाके आत्मा को पड़ते हैं
क्या उनके घाव कभी भर पाएंगे
या इतिहास फिर से दोहराया जाएगा
क्या फिर कोई और पीड़ित होगा
यह तो वक्त ही बताएगा
सिलसिला एक वक्त पर आकर रुकेगा या नहीं
न जानें कल क्या होगा यह तो वक्त ही बताएगा
लेकिन एक आज पर भी वही पुराने ज़ख्म कायम है
उस दुःख को कभी न भुलाने वाले काले बादल मंडरा रहे हैं
ए वक्त जा जाके जगा उसे जा जाके समझा उसे
जो घाव कभी उसके भरे ही नहीं थे
वही घाव आज़ वह किसी और को भेंट दे रहा है
कल के एक भविष्य पर आज़ के कोमल मन पर प्रहार कर रहा है
कहीं ऐसा न हो जाए की इतिहास फिर से दोहराया जाए और प्रहार का वार कभी रुक न पाए
यह वक्त भी गुज़र जाएगा तू धीरज से काम ले जाके उसे समझा दे
जो अनुभव तुझे प्राप्त हुए उसमें तेरी गलतियां नहीं थी
लेकीन अगर तू वहीं कर रहा है जो उस वक्त तेरे लिए बुरा था तो
वो आज भी किसी और के लिए भी बुरा ही है फ़िर तुम भी गलत हो
ए वक्त क्या होने देगा एक और अन्याय या करेगा सही समय पर न्याय
परिस्थितियों में उलझना नहीं है बल्कि हर परिस्थिति से प्यार से बाहर आना है
वक्त बुरा नहीं है, विचार बुरे हैं
अपनों पर किए गए प्रहार बुरे हैं
अन्याय करने से ज्यादा अन्याय सहना बुरा है
जा वक्त समझा उन्हें जो पीड़ित हैं,
अन्याय का विरोध करना है हरहाल में करना है
कोई साथ दे या नहीं अपनी लड़ाई ख़ुद लड़ना है
अब और प्रहार नहीं सहना है,
प्रहार सहना भी ख़ुद को अपराधी सिद्ध करना है,
जो चुप रहकर अन्याय सहते हैं वो एक अपराधी को बचाने का अपराध करते हैं
_ सोनम पुनीत दुबे
स्वरचित एवम् मौलिक रचना