अन्तर्बल
है हृदय में व्याप्त सबके
एक बल जो अन्तर्बल।
हर हताशा दूर करता
हर निराशा दूर करता
अथाह दुःख मझधार में
हौसला न कम करता
हे मनुष्य तुझे उसी पर
रखना है विश्वास प्रबल।
हर युद्ध जीतना है तुझे
चुनौतियाँ अम्बार से
हर समय लड़ना है तुझे
कठिन सभी हालात से
थक कर अकेला बैठ कर
ऐसे ना अपने हाथ मल।
वीर कभी अपने गर्व पर
शत्रु से हारा नहीं
स्वयं संकट की घड़ी में
औरों ने तारा नहीं
देख कर सब को परख लिया
काम ना आए औरों बल।
भाग्य अपने हाथ में है
चाँद तारे साथ में है
दिशा चक्र की चिंता में
ना व्यर्थ समय खो हाथ में है
लड़ अकेला वीर है तू
खोल अपना अन्तर्बल।
-विष्णु प्रसाद’पाँचोटिया’
्््््््््््््््््््््््््््््््््््््