अनोखी मोहब्बत
कुछ खत मोहब्बत के
यूं रात रात जग कर मैं जो चांद का दीदार करती हूं,
तुम्हें क्या पता सनम मैं तुमसे कितना प्यार करती हूं।
हमारे प्यार के खिलाफ है यह सारा जमाना,
हो जमाने से बेखबर मैं इजहार करती हूं।
लोग कहते हैं हम दोनों आपस में लड़ते बहुत हैं,
उन्हें क्या पता मैं तुमसे प्यार भरी तकरार करती हूं।
कभी तुम मुझे मनाते हो कभी मैं तुम्हें मनाती हूं,
लोग कहते हैं मैं नखरे इक हजार करती हूं।
हम दोनों ही नहीं रह पाएंगे एक दूजे के बिना,
हर पल (वक्त)ही मैं तेरा इंतजार करती हूं।
लड़ाई झगड़े तो जिंदगी के अहम हिस्से हैं,
हमारे अनोखे प्यार के अजब ही किस्से हैं।
सरगम के दिल में बसी है सूरत तुम्हारी,
अक्सर मैं प्यार भरा मनुहार करती हूं।
यूं रात रात जग घर मैं जो चांद का दीदार करती हूं,
तुम्हें क्या पता सनम मैं तुमसे कितना प्यार करती हूं।
स्वरचित मौलिक
सरगम भट्ट ✍️ धवरिया संतकबीरनगर खलीलाबाद उत्तर प्रदेश