अनोखा बंधन
प्रेम अनोखा वो बंधन है ,संबंध है एहसास का
भाव जगाये जो दिल में, राधा कृष्ण के वास का
बिन बांधे जो बंध जाए प्रीत प्रेम की माला से
अधरों पे मुस्कान लाना रहता ,दोनों के प्रयास का
विवाह ही लक्ष्य है प्रेम का ,भ्रम है ये इंसान का
प्यार को पाना ही प्रेम है ,ये भूल है इंसान की
बंधना ही प्रेम नहीं प्रेम दो भावों का संगम है
कुछ मिलते कुछ बिछड़ते ,सँघर्ष है इंसान का
भाग्यवश मिलता प्रेम यहाँ ,कभी विवश होना होता है
पाना ही बस चाहत बनती ना मिलने से मन रोता है
पवित्रता प्रेम का समपर्ण जो कभी ना खत्म हो
प्रेम ऐसा जो हो जाए ,खुशी से ये दिल खोता है
होता जब हृदय का एक दूजे के ह्रदय से मिलन
मौन में भी जो बातों में करे ,एक दूजे को सुमिरन
ऐसा अटूट रिश्ता जब बन जाता एक दूजे के मन में
राधा कृष्ण का सच्चा प्रेम ,जिसको करते सब अर्चन
ममता रानी