अनोखा बंधन…… एक सोच
शीर्षक – अनोखा बंधन
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अनोखा बंधन तो मन भावों में होता हैं।
दिल और चाहत का सहयोग रहता हैं।
बस हम साथ किसी के सोच कहतीं हैं।
अनोखा बंधन की जिंदगी अलग रहती हैं।
तेरे मेरे बचपन की सोच अनोखा बंधन हैं।
आधुनिक समय में सबकी अपनी सोच हैं।
आज हम सभी समानता के साथ जीते हैं।
अनोखा बंधन भी हम सभी समझते हैं।
हमारी सोच और व्यवहार सम्मान होता हैं।
सचमुच अनोखा बंधन आज हमारी सोच हैं।
आज हम तुम संग अनोखा बंधन जोड़ते हैं।
तुम ख्बाव और हम दोनों देखें सोचते हैं।
अनोखा बंधन न रुसवाई न मिलन संग हैं।
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नीरज कुमार अग्रवाल चंदौसी उ.प्र