अनोखा प्रेम
हमारे मोहल्ले में गीता आंटी रहती है हम अक्सर उनके यहाँ जाया आया करते है l कल सुबह की ही बात है हम जैसे ही आंटी के दरवाजा के पास पहुंचे, अंदर से किसी को डांटने की आवाज आ रही थी l
सुरेश तूने फिर से कप तोड़ दिया l अभी परसो ही तुमने काँच के गिलास तोड़े थे और आज ये कप तोड़ दिया l जरा सा भी इसका मन काम में नहीं लगता l
ध्यान कहाँ रहता है तुम्हारा ?
जब से आये हो कभी कुछ तोड़ते तो कभी कुछ l सोलह साल के हो गए हो, कोई बच्चा नहीं रहे l मैट्रिक में दाखिला लिया है तुमने, अब तो सुधर जाओ l
ये डाट सुरेश को पड़ रही थी l सुरेश आंटी का नौकर है l
मैं जैसे ही बरामदे में पहुंचा आंटी बड़बड़ाती हुई रसोई से बाहर निकल गई l
आंटी की तबियत ज्यादातर खराब ही रहा करती थी l जिसके कारण उनसे घर का सारा काम ठीक से नहीं हो पता था l इसलिए सुरेश को एक साल पहले रखा गया था l
सुरेश अपने माँ के साथ गाँव में रहता था सुरेश के पिता नहीं थे l जब वो छोटा सा था तब ही उसके पिता की मृत्यु हैजा बीमारी के कारण हो गया था l और घर का सारा खर्च उसके माँ पर आ गया था l सुरेश की माँ दूसरों की खेत में मजदूरी करती थी, फिर भी दो वक्त का खाना नहीं जुटा पाती थी l इसलिए सुरेश को उसकी माँ ने शहर आंटी के यहाँ काम करने लिए भेजी थी ताकि उससे जो पैसा आएगा, उससे उसके परिवार का गुजर बसर हो जायेगा l
सुरेश आगे पढ़ना तो नहीं चाहता था l पर आंटी ने जबरदस्ती उसका नामांकन करा दी थी l और जब सारा काम ख़त्म हो जाता था तो खाली वक्त में आंटी ही सुरेश को पढ़ाती थी l पता नहीं क्यों, पर सुरेश को आंटी में अपनी माँ की झलक दिखाई देती थी l
आंटी के रसोई से बाहर जाते ही उनकी सास ने रसोई में प्रवेश की और सुरेश से कहा, पता नहीं इसे किस बात का घमंड है, हर छोटी- छोटी बात पर गुस्सा हो जाती है दो कप ही तो टूटे है ऐसा क्या कर दिया तूने l कोई पहाड़ तो नहीं तोड़ दिया, हर वक्त गुस्सा से लाल पिली हुई रहती है l
सुरेश को दादी की बात अच्छी नहीं लगी, और वो चुपचाप अपने कमरे में चला गया l
उसकी आँखे दरवाजे पर लगी हुई थी l की थोड़ी देर में आंटी उसके लिए खाना लेकर आई और बोली “आज फिर बिना खाये सोने की तैयारी में थे तुम्हे पता है न मेरा गुस्सा कितना तेज है अब कुछ टूटता- फूटता है तो हमें गुस्सा आ जाता है और तुम्हे डाट देती हूँ थोड़ा संभल कर काम किया करो” जी आंटी कह कर उसने अपने खाने की प्लेट ले ली l आज उसे फिर दो रसगुल्ले मिले थे l इसलिए सुरेश को आंटी में अपनी माँ दिखाई देती थी l उसकी माँ की तरह अपना गुस्सा उतरते ही पिघले मोम सा स्नेह लुटा जाती थी l कभी दो रसगुल्ले, कभी दूध, कभी दही, खिला कर अपने हाथों से उसका सिर थपथपा जाती थी l
सुरेश उनके इस अनोखा प्रेम की मिठास में डूब कर अपनी माँ को याद कर लेता था l