अनोखा गुलाब (“माँ भारती ”)
उपवन में हमने देखा एक अनोखा गुलाब,
उसके रंगों में था, प्रेम – प्यार का शबाब ,
काँटों के मध्य उसमें थी , उमंग बेहिसाब,
सभी को दिया उसने प्यार का बेमिसाल जवाब ,
नादान बार-बार पूछते मुझसे अनोखे गुलाब का नाम ,
गुलाब तले रहकर भी बनते वह बिलकुल अनजान,
ये भी तक न जान पाए “ माँ भारती ” है उसका नाम,
मशाल लेकर करते हैं सिंहनाद “ मेरा भारत महान ”
हमने उसके बच्चों के लिए क्या किया?क्या हमें इसका ज्ञान,
अपने तक ही सीमित रहे तो है “माँ भारती ” का अपमान,
“माँ भारती ” की एक करुण पुकार
“माँ भारती ” की सिसकियों के मध्य एक करुण पुकार ,
“राज” इंसान बनकर दिखा दो तुम ही हो मेरा प्यार दुलार,
तुमसे ही सबकुछ मेरा, अपनी माँ का कर सकते हो उद्धार,
बार-2 क्यों खड़ी करते हो मेरे आँगन में नफ़रत की दीवार ,
टूट चुकी हूँ अब बेटा,तुम ही करा सकते हो मुझे भवसागर पार I
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देशराज “राज”