अनेकों ज़ख्म ऐसे हैं कुछ अपने भी पराये भी ।
अनेकों ज़ख्म ऐसे हैं कुछ अपने भी पराये भी ।
अब तुमको क्या दिखायें और तुमसे क्या छुपायें जी ।।
नतीज़ा तो क्या होगा वही होगा जो मंजूरे ख़ुदा होगा ।
फ़ज़ीता खामख्वाह दुनिया में क्यों उनका और अपना करायें जी ।।
अनेकों ज़ख्म ऐसे हैं कुछ अपने भी पराये भी ।
अब तुमको क्या दिखायें और तुमसे क्या छुपायें जी ।।
नतीज़ा तो क्या होगा वही होगा जो मंजूरे ख़ुदा होगा ।
फ़ज़ीता खामख्वाह दुनिया में क्यों उनका और अपना करायें जी ।।