अनेकता में एकता 🇮🇳🇮🇳
अनेक में एकता
एक बगिया के फूल हैं हम,
एक हमारा माली है,
भिन्न-2 रंग हो चाहें,
एक हमारी डाली हैं।
देश मेरा बड़ा रंगीला,
भिन्न रंगों से सजा सजीला,
भिन्न हुए प्रान्त तो क्या,
देश हमारा एक है।
विकास की ओर बढ़ता हुआ,
जज़्बा हमारा एक है।
भिन्न हुई बोली तो क्या,
भावना तो एक हैं।
प्रेम बसा दिलों में हैं,
आत्मा तो एक है,
भिन्न हुई वेशभूषा तो क्या,
इंसान के नाते एक है।
इंसानियत बसी रोम-2 में,
जीने की कला तो एक है,
भिन्न हुए धर्म तो क्या,
विचार हमारे नेक है।
पूजा पद्धति अलग तो क्या
अभ्यर्थना भी एक है,
भिन्न हुए नृत्य तो क्या,
संस्कृति तो अभिन्न हैं।
कश्मीर से कन्याकुमारी तक,
देश मेरा फैला हुआ,
भिन्न-2 हुए क्षेत्र तो क्या,
राष्ट्रीयगान तो एक है।
जब-2 भारत माँ ने पुकारा,
वीरों ने कुर्बानियाँ दी,
अलग-2 घरों से हैं,
राष्ट्रभक्ति तो एक है।
एक ही माला के फूल सब,
रूप अनेक ईश्वर एक है,
श्वास-2 में बसी ‘मधुर’
प्रतिच्छाया भी तो एक है।
✍️माधुरी शर्मा मधुर
अंबाला हरियाणा।