*अनुशासन के पर्याय अध्यापक श्री लाल सिंह जी : शत शत नमन*
अनुशासन के पर्याय अध्यापक श्री लाल सिंह जी : शत शत नमन
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श्री लाल सिंह जी नहीं रहे । 29 अप्रैल 2021 को आप का स्वर्गवास हो गया । सुंदर लाल इंटर कॉलेज के आप केवल एक अध्यापक ही नहीं थे अपितु विद्यालय की आरंभ से यात्रा-प्रवाह के साक्षी और सहयात्री भी थे।
जब से विद्यालय 1956 में शुरू हुआ संभवत पहले सत्र से ही आप अध्यापक के तौर पर युवावस्था के प्रभात में विद्यालय को अध्यापन की अपनी सेवाएं प्रदान करने लगे थे । आप में सब प्रकार से सैनिक-अनुशासन वाली बात थी। आप की चाल-ढाल ,बातचीत और जिस प्रकार की आप की मुद्रा रहती थी ,वह सैनिक का ही प्रतिबिंब उपस्थित करती थी । विद्यालय को अनुशासित बनाने में यूं तो सभी अध्यापकों का योगदान रहता है किंतु फिर भी कुछ नाम ऐसे होते हैं जिनके कंधों पर अनुशासन का काम सौंपा नहीं जाता अपितु वह अपनी नैसर्गिक प्रकृति के अनुरूप अनुशासन के भाव को अपने हाथ में ले लिया करते हैं। लाल सिंह जी का भी ऐसा ही स्वभाव था।
वैसे तो अनुशासन की आवश्यकता किसी भी संस्था को आजीवन बनी रहती है लेकिन शुरुआत के वर्षों में तो इसकी जरूरत कुछ ज्यादा ही होती है । वातावरण की जैसी नींव शुरुआत के दशक में पड़ जाती है ,आगे चलकर उसी पर भवन का निर्माण होता है। शास्त्री जी और लाल सिंह जी यह दो ऐसे नाम थे जिन्होंने सुंदर लाल इंटर कॉलेज को अपनी साधुता , सच्चरित्रता और संयमित जीवन – चर्या के द्वारा जिन ऊँचाइयों पर पहुंचाया ,वह संभवत इनके अभाव में पूरी नहीं हो पाती ।
लाल सिंह जी को हमेशा मर्यादाओं के भीतर विचरण करने का स्वभाव था । कभी किसी से ओछा मजाक करते हुए उन्हें किसी ने नहीं देखा । विद्यालय में विद्यार्थी केवल किताबों में लिखे हुए उपदेशों से प्रभावित नहीं होते अपितु अध्यापक के चरित्र की छाप ही उन पर मुख्यतः पड़ती है और फिर सारा जीवन वह उसी का स्मरण लिए हुए रहते हैं । वैसे तो मैं बचपन से ही लाल सिंह जी से को देखता रहा हूं लेकिन कक्षा 6 से 12 तक सुंदर लाल इंटर कॉलेज में पढ़ते हुए मैंने श्री लाल सिंह जी को विशेष रुप से निकट से देखा। सादगी से भरे उनके खुरदुरे व्यक्तित्व के साथ खादी का बंद गले का कोट खूब फबता था । वह ईमानदार व्यक्ति थे । नैतिक मूल्यों से ओतप्रोत । अपने लंबे कार्यकाल में एक भी दिन ऐसा नहीं कहा जा सकता ,जब कोई उंगली उन पर उठी हो । हर दायित्व को नैतिकता के बोध के साथ ही उन्होंने निर्वहन किया । 1962 – 63 के विद्यालय के एनसीसी ग्रुप के एक फोटो में उनकी स्वाभिमानी छवि देखते ही बनती है। त्याग और तपस्यामय जीवन से ही ऐसी स्वाभिमानी वृत्ति अर्जित की जाती है।
मृत्यु के समय उन्हें विद्यालय से रिटायर हुए लगभग तीन दशक पूरे हो चुके थे ,लेकिन उनके सद्गुणों की छाप कुछ ऐसी थी जो मानस से नहीं हटती । आप की पावन स्मृति को शत-शत प्रणाम ।।
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रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर ( उत्तर प्रदेश )
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