अनुभव
विफल कितना भी हो तुम, लड़ना सीखना होगा
गति अति मंद हो तो भी, चलना सीखना होगा
निश्चित निरंतर अभ्यास में, तपना सीखना होगा
साधक को सार्थकता में, पलना सीखना होगा
अभी देखी कहा दुनियां, जो इतना इतराते हो
सभी का देख सिंदूर को, इतना क्यों लुभाते हो
अभी मंजिल दूर हैं तुझसे, विस्तर क्यों लगाते हो
सोई आँख में, हकीकत सपना, क्यों सजाते हो
संवेग संवेदना प्रसारित, मनोविकार करते हो
आशीष जननी दे रहीं, फिर क्यों तरसते हो
चंचल चित्त कर के, खुद पर क्यों बरसते हो
नभ में वात के मन से, यारा क्यों विचरते हो
सत्य को स्वीकार कर, अधरों से हम कह गए
नीर में अम्बुज बने, शाश्वत सहम कर रह गए
तुझसे सीखा जौहरी, कर्त्तव्यता का पाठ जो
निम्नवत बीजक की रेखा, जटिल बीते रात जो