अनुभव का वृतांत (भाग-2)
कक्षा समाप्त करके, जब मैं वापस आई,
मुझे हैडमास्टर जी ने खूब फटकार लगाई ।
मुझसे बोले, “अपनी संवेदनाओं को ज्योति जी, रखिए अपने पास”,
माफिनामा दीजिए! न तो कल से करिएगा ना क्लास ।।
अचरज में पड़ी मैं, कुछ भी न समझ रही थी,
घर जाने की जल्दी में, माफिनामा लिख रही थी ।
किन्तु हृदय बार-बार ज़ोर-ज़ोर से चित्कार रहा था,
क्या कसूर था मेरा, जो मुझसे माफिनामा लिखवाया जा रहा था ।।
मैं आपसे पूछती हूँ दोस्तों, जवाब ज़रूर दीजिएगा ……….
क्या शिक्षा का स्तर, अब इस कदर गिर चुका है,
लड़कपन के दोष में, एक छात्र को पीटा जा रहा था ।
मौन-मूक दर्शन बन, सब यूँ ही देख रहे थे,
एक तमाशा इसे समझ, अपनी झूठी राय दे रहे थे ।।
एक सीधी बात कहूँ …..?
चुप थी मैं किन्तु हृदय पूछ रहा था चित्कार रहा था,
एक शिक्षिका का छात्र से मातृत्व प्रेम, किसी को क्यों न ग्वारा था ?
जिस प्रकार एक बच्चा अपनी माँ का प्रतिबिंब हुआ करता है,
एक छात्र भी तो, गुरु के दिखाए पथ पर चलता है ।।
अपने अर्जित अनुभवों के आधार पर मैं शिक्षा का इस कदर अपमान नहीं बर्दाश्त कर पाई। दोस्तों मैं शिक्षिका के रूप में कैसे पढ़ाऊँगी ..? दो लाइनें ज़रूर सुनिए :-
“अपनी वाणी में भरकर मिठास, कलम की ऐसी तान सुनाऊँगी,
बिना प्रताड़ना और आघात के, उन्हें नई दिशा दिखलाऊँगी “। (2)
~ज्योति