अनुपम पल्लव प्रेम का
अनुपम पल्लव प्रेम का, बसता हिय दरबार।
समझे मानव सार जब,बदले निज व्यवहार।
बदले निज व्यवहार,करे जीवों की सेवा।
लखकर ऐसे भाव,रहें हर्षित सब देवा।
प्रेम हृदय का साज, कुटिलता का मेटे तम।
कहता कविवर ओम,प्रेम का पल्लव अनुपम।।
ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम