अनुज व्यथा
…. जीवन की दुखद अनुभूति ….
॥ अनुज-व्यथा ॥
कुछ कही अनकही बात कुछ भी नहीं
किन्तु सुलझी नहीं बस उलझती रही
मैं उपेक्षित रहा हास-परिहास बन ,
मूक रह कर स्वयं ही हॅसाता रहा ।
वेदना को हृदय- तम में निग्रह किया
पर्व उत्सव में नीरव सताता रहा ।।
मैं भटकता रहा स्नेह ममता लिये
प्रीति करुणित रुदन कर सिसकती रही ।
कुछ कही अनकही……. ॥
सत्य अरु धर्म की ले पताका सदा
गर्व से मैं अथक पद बढाता रहा ।
धीर गंभीर निर्मल सजल नेत्र से ,
अर्घ्य अर्चन सुमन नित चढाता रहा
कर्म-निष्ठा अनुज-धर्म-आदर्श में ,
किन्तु उल्लास अभिलाष घुटती रही ।
कुछ कही अनकही ……… ॥
मैं तो बेसुध समर्पित था अनुचर बना,
क्यों छोङा सरित जल की मॅझधार में ।
आज जीवन विवश और बोझिल बना ,
मैं अकिञ्चन खङा क्रूर संसार में ।।
त्याग मुझको दिया पूज्य परिवार ने
सह- उदरता विकल हो बिलखती रही
कुछ कही अनकही बात कुछ भी नहीं
किन्तु सुलझी नही बस उलझती रही
डा. उमेश चन्द्र श्रीवास्तव
लखनऊ