‘अनुगामिनी’
‘अनुगामिनी’
मैं हूँ अनुगामिनी तुम्हारी,
मैं संग थी,संग में ही रहूँगी।
शूल सी बातें भी तुम्हारी,
स्मृति में फूल सी रखूँगी।
मैं हूँ अनुगामिनी तुम्हारी,
मैं संग थी, संग में ही रहूँगी ।
हो सका नहीं जो प्राप्त तुम से,
कोई दोष तुम पर नहीं धरूँगी।
मन से विस्मृत जो हुई तो,
हृदय गमन श्वासों से करूँगी।
मैं हूँ अनुगामिनी तुम्हारी,
मैं संग थी, संग में ही रहूँगी ।
संयोग ही वियोग था जब,
आनंद में भरकर उसको सहूँगी।
राह सदा ही निष्कंटक हो तुम्हारी ,
मैं मार्ग के सब कंटक चुनूँगी।
मैं हूँ अनुगामिनी तुम्हारी,
मैं संग थी, संग में ही रहूँगी ।
रहो प्रसन्नचित तुम जहाँ भी रहो,
मैं जगदीश से अर्चना करूँगी।
इस जन्म तो क्या, सातों जन्म तक,
अभिवंदना तुम्हारी ही करूँगी।
मैं हूँ अनुगामिनी तुम्हारी,
मैं संग थी, संग में ही रहूँगी ।
स्वरचित
-श्रीमती गोदाम्बरी नेगी
हरिद्वार उत्तराखंड