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20 Aug 2020 · 4 min read

अनिल बिड़लान जी द्वारा दीपक मेवाती की कविता की समीक्षा….

समकालीन साहित्यकारों में अपनी जोरदार उपस्थिति दर्ज करवाते हुए भाई नरेंद्र वाल्मीकि जी ने अपने संपादित (कब तक मारे जाओगे) काव्य संग्रह में विशेषकर सफाई कर्मियों की दयनीय हालात को उजागर किया है।आज इस काव्य संग्रह में से दीपक मेवाती वाल्मीकि जी द्वारा रचित कविता
{जाने कब वो कल होगा} पढ़ने का दोबारा मौका मिला है।

सर्वप्रथम मैने इस काव्य संग्रह में से ही इस कविता को पढ़ने का आंनद उठाया था।

इस कविता के माध्यम से कवि ने समाज की विभिन्न समस्याओं को जोरदार तरीके से उठाया है।बहुत सी ऐसी समस्याएं है जिनसे समाज का बहुत सा तबका हर रोज झुझता है और जीवन में इनका बहुत ही कटु अनुभव भी करता है।

काव्य संग्रह (कब तक मारे जाओगे) में यह कविता पृष्ठ संख्या 94 से 96 तक प्रकाशित है। कविता थोड़ी सी लम्बी जरूर दिखाई देती है परन्तु समाज के हर पहलु को अपने में समाहित भी किया गया है जिसके कारण इसका सौन्दर्य भी निखर कर आता है।इस कविता की आरम्भ की कुछ पंक्तियां निम्न है :-
मैं भी प्यार मोहब्बत लिखता
लिखता मैं भी प्रेम दुलार
लिखता यौवन की अँगड़ाई
लिखता रूठ और मनुहार….

कवि ने कविता के आरम्भ में अपने प्रेम,यौवन,रूठना मनाना आदि मनोभावों को शालीनता से प्रकट किया है। फिर स्वयं से ध्यान हटाकर जिस प्रकार अपने मन को धीरे से समाज की समस्याओं की तरफ झुकाया है वो बड़ा क़ाबिले तारिफ हैं।
इसी प्रकार ठेकेदारी प्रथा के शोषण के बारे में लिखता हुआ कवि कहता है कि –
ठेकेदारी प्रथा में
ठेका देह का वो करता है
सीवर में उतरे बेझिझक
नहीं किसी से डरता है……

ठेकेदारों द्वारा जिस प्रकार से सफाई कर्मी का शोषण किया जाता है वो बहुत ही क्रूरतापूर्ण है।बिना किसी सुरक्षा उपकरणों के सफाई कर्मियों को गंदगी और जहरीली गैसो से भरे गटरों में उतार दिया जाता है। जिसका दुष्परिणाम सफाई कर्मी को अपनी जान देकर भुगतना पड़ता है। परिवार को ना कोई मुआवजा ना नौकरी, ना ही कोई अन्य सरकारी सहायता मिलती है। ठेकेदार का ठेका रद्द नहीं होता ना ही उसके खिलाफ हत्या के मामले में मुकदमा दर्ज होता। बस उसका ठेका चलता रहता है अगले दिन किसी और सफाईकर्मि को गटर में उतार देता है।

हमारे समाज को दिया गया नया नाम वाल्मीकि भी किसी काम नहीं आता।आगे पिछे हमें उन्हीं नामों चुहड़ा,भंगी आदि नामों से पुकारते है जिस से उनको गर्व की अनुभूति होती है।
देश के सामाजिक हालातो में सम्मान पाने के लिए मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा चर्च आदि धार्मिक स्थलों पर भी जाता है।
परन्तु जिस सम्मान को समाज से वो पाना चाहता है वो भी वहाँ नहीं मिलता।
धर्म और धर्म परिवर्तन के बारे में कवि लिखता है कि –
मंदिर मस्जिद नहीं छोड़े
न गुरुद्वारे से दूर रहा
नहीं मिला सम्मान कहीं भी
धर्म परिवर्तन की ओर बढ़ा।

आखिरकार परेशान हो वह धर्म परिवर्तन कर अन्य धर्मों को भी अपना लेता है।मगर उसकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में धर्म परिवर्तन से भी कोई फायदा नहीं होता है। उसकी जाति,गरीबी मनुवादियों द्वारा किया जाने वाला उसका अनादर और तिरस्कार ज्यों का त्यों बना रहता है।
इस प्रकार से उसको धर्म का मुखौटा बदलने का भी कोई लाभ नहीं हुआ।

कवि ने सरकारी व्यवस्था पर भी सवाल उठाएं है कि,सरकार
की नीतियां कागजों तक ही सीमित है धरातल पर इन सफाईकर्मियों को कोई सहायता नहीं मिलती।

कविता पढ़कर स्वच्छाकार समाज की दयनीय हालात को समझने में बहुत मदद मिलती है। कवि ने बहुत ही बारीकी से समाज की समस्याओं को सरकार के समुख भी उठाया है और ठेकेदारी प्रथा के खिलाफ विरोध भी जताया है।

कवि बधाई का पात्र हैं जिस प्रकार से समाज के साथ अपनी साहित्यिक क्रांती के साथ खड़ा हुआ है।

©Anil Bidlyan
Kurukshetra (Haryana)

कविता
जाने कब वो कल होगा…….

मैं भी प्यार मोहब्बत लिखता
लिखता मैं भी प्रेम दुलार
लिखता यौवन की अंगड़ाई
लिखता रूठ और मनुहार
लिखता प्रकृति की भाषा
लिखता दुश्मन का मैं वार
लिखता फूलों की मादकता
लिखता नभमंडल के पार|

पर नहीं सोच पाता है मन
कुछ उससे आगे पार लिखूं
जिससे जीवन सुरक्षित सभी का
बस उसका जीवन सार लिखूं|

जहाँ की सोच लग जाता है
कपड़ा सबकी नाक पर
जिसने जीवन रखा है अपना
सबकी खातिर ताक पर
जो झेले हर-दम दुत्कारा
सबकुछ करते रहने पर
नहीं तनिक अफ़सोस किसी को,
उसके मरते रहने पर|

ठेकेदारी प्रथा में
ठेका देह का वो करता है
सीवर में उतरे बेझिझक
और नहीं किसी से डरता है
नहीं किसी से डरता है
और न प्रवाह मर जाने की
खुद से ज्यादा सोचता है वो
इस बेदर्द जमाने की|
इस बेदर्द जमाने की
हर बार निराली होती है
न्याय-प्रणाली रसूखदार के
ही दरवज्जे सोती है|

औजार देह को बना लिया है
बदबू-गंदगी सहता है
साफ़-सुथरी नहीं जगह है
वो बस्ती में रहता है|

नहीं कभी कुछ कहता है
हर पल उत्पीड़न सहता है
नहीं मौत की कीमत उसकी
पानी-सा खूं उसका बहता है|

कभी-भंगी-कभी चुहुड़ा कहा
कभी मेहतर, कभी डोम-डुमार
वाल्मीकि नाम दिया मिलने को
फिर भी करते अलग व्यवहार|

समाज में सम्मान का वो
हर पल खोजी रहता है
बाबा, मैया के द्वारे
हर-दम जाता रहता है|

मंदिर-मस्जिद नहीं छोड़े
न गुरद्वारे से दूर रहा
नहीं मिला सम्मान कहीं भी
धर्म-परिवर्तन की भी ओर बढ़ा|

सरकार ने नीति बना रखी है
पर धरातल पर काम नहीं
जितना काम करता है वो
उसका भी सही दाम नहीं |

जाने कब वो घड़ी आएगी
जाने कैसा पल होगा
जब मान मिलेगा इस सैनिक को
जाने कब वो कल होगा………………

Language: Hindi
Tag: लेख
5 Likes · 447 Views
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