अनहोनी पर मनमोहिनी शा’इरी
संकलनकर्ता: महावीर उत्तराँचली
(1.)
दिन में तारे देखे थे
अनहोनी भी होनी थी
—आबिद मुनावरी
(2.)
तुमसे मिलना इत्तेफाक था
और बिछुड़ना अनहोनी थी
—रमेश प्रसून
(3.)
इसे मैं तो कहूँगा है ये अनहोनी नहीं तो क्या
ख़फ़ा थे कल तलक जो हमसे गहरे यार हो गये हैं
—महावीर उत्तरांचली
(4.)
लगता है कुछ अनहोनी सी होने वाली है
दरहम-बरहम होने को है जैसे निज़ाम-ए-दहर
—शफ़ीक़ सलीमी
(5.)
अनहोनी की चिंता होनी का अन्याय ‘नज़र’
दोनों बैरी हैं जीवन के हम समझाएँ तुम्हें
—ज़ुहूर नज़र
(6.)
इश्क़ को नाम दे दे अनहोनी
आग सी है ये ठण्डे पानी में
—महावीर उत्तरांचली
(7.)
कैसी कैसी अनहोनी बातें होती हैं
कैसे कैसे दुनिया ने इल्ज़ाम गढ़े हैं
—नूर तक़ी नूर
(8.)
कोई अनहोनी शायद हो गई फिर
ग़ुबार-ए-कारवाँ ठहरा हुआ है
—अख़तर शाहजहाँपुरी
(9.)
एक अनहोनी का डर है और मैं
दश्त का अंधा सफ़र है और मैं
—नासिर अली सय्यद
(10.)
प्यारों से मिल जाएँ प्यारे अनहोनी कब होनी होगी
काँटे फूल बनेंगे कैसे कब सुख सेज बिछौना होगा
—मीराजी
(11.)
इस में कोई नहीं है अनहोनी
पूरे अरमान कब हुए पहले
—सय्यद सग़ीर सफ़ी
(12.)
छोड़ ‘फ़क़ीह’ ये होनी का सुर अनहोनी की तान लगाओ
होनी में है कोई हुनर क्या होनी को तो होना होगा
—अहमद फ़क़ीह
(13.)
कोई अनहोनी हो जाएगी जैसे
मैं अब ऐसी ही बातें सोचता हूँ
—रज़्ज़ाक़ अरशद
(14.)
एक खिलौना टूट गया तो और कई मिल जाएँगे
बालक ये अनहोनी तुझ को किस बैरी ने सुझाई है
—मीराजी
(15.)
बला की आग है बुझती नहीं यारो
कहो ना इश्क़ अनहोनी है ये शायद
—महावीर उत्तरांचली
(साभार, संदर्भ: ‘कविताकोश’; ‘रेख़्ता’; ‘स्वर्गविभा’; ‘प्रतिलिपि’; ‘साहित्यकुंज’ आदि हिंदी वेबसाइट्स।)