अनसुलझे सवाल
मुझे कोई दिक्कत नहीं है
न कोई शिकायत है
बस कुछ अनसुलझे से
सवाल हैं जहन में
जिनका कोई जबाव नहीं है
मेरे पास ।
अभी रहने लगा हूं उलझन में,
लेकिन ये उथल – पुथल
कोई हल नहीं है,
इस उलझन का
कोई तो समाधान होगा
जिससे इस दशा को
सुधरा जा सके ।
अब समझ में आया
ये दिल क्यों दुखी है
इसको मालूम पड़ गया है
देश के हालात का ब्यौरा
स्वास्थ्य व्यवस्था, भुखमरी
अशिक्षा , बेरोजगारी
देश के खद्दरधारी मानस
और लोकतंत्र के चौथे खंबे का हाल।
काश हमारे लोकतंत्र को
देश के नेताओं ने,
महत्व दिया होता
तो न होती हत्या
विपक्ष के सवालों की,
मीडिया न बिका होता
तरजीह पर होते समाज के मुद्दे,
न झगड़ा होता धर्म का
न हत्या होती जाति के नाम पर ।
अब तो बस ऐसा लगता है
कि समाज भी बेबस है,
खादी के हाथों बिक चुका है
बन गया है कठपुतली,
अपनी सोच – समझ
होश ओ हवास को खो चुका है,
शायद अब कोई अचंभा होगा
ऐसा मालूम पड़ता है
जो इन हालात से बाहर निकलेगा ।
क्या कोई अफलातून आयेगा
जो निजात दिलाएगा
देश के दबे- कुचले जन – मानस को,
मिलेगा न्याय और समृद्धि
मातृ शक्ति को सुरक्षा
गरीबों को उनका हक – ओ – अधिकार
वोटर को उसका जनप्रिय जनसेवक
विपक्ष को सवाल करने का अधिकार
और देश को निष्पक्ष सरकार ।