अनलॉक – 1 , ” अज्ञानता “
प्रभु के द्वार खुलेंगे अब
इस आसरे बैठे है सब ,
कैसी ये अज्ञानता है
इंसान प्रभु को ही नही जानता है ,
जो सर्वत्र विद्धमान है
उसी से हम अनजान हैं ,
द्वारा खुलना बंद होना
मात्र भ्रम जाल का है होना ,
उसको चिंता थी हमारी
बंद कर ली अपनी भी किवाड़ी ,
तीनों लोकों का रचयिता जो
हमारे अंदर ही बसता वो ,
सब इस बात को समझें
सब इस बात को जानें ,
दर्शन चढ़ावा कुछ नही है
वो हम सबके बीच यही है ,
चले हैं हम अहंकारी बंद करने उस रखवाले को
जिसने बिना छुये तोड़ा अत्याचारी कंस के तालों को ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 07/06/2020 )