अनर्गल गीत नहीं गाती हूं!
अनर्गल गीत नहीं गाती हूं!
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अपनी हीं बुद्धि में मगरुर, सुनो आज के चंदवरदाई!
चारण, अभिनंदन या अनर्गल गीत नही,
मैं लिख रही हूं आहत मन की पीड़ भरी नई भाषा,
नहीं जाती, धर्म, समुदाय या वर्ग विशेष की परिभाषा।
सहिष्णुता का आज यहां आभाव जिन्हें दिखता है।
न भूत का ज्ञान न
भविष्य का कोई भान
नवयुग का तानसेन जिन्हें,
स्वराज्य खोखला-सा दिखता है।
घूंघट में आधी आंखे ढंक कर
शब्द उधार कहिं और से ले कर
दिन को रात, रात को दिन
कहने वालों, बोलो तेरा चैन कहां है?
क्यों जीवन का बोझ जब-जब
कांधे पर आता है,
अपना भारत ही भाता है?
लोकतंत्र के मन्दिर में निर्वाचित सरकारों का आना और जाना,
बीत गये परखने में हीं बहुमुल्य पचहत्तर वर्ष।
भारत परिवर्तित हुआ बहुत इसमें कोई दो राय नहीं,
लेकिन शेष अभी बहुत है इससे भी इंकार नहीं।
यहां कचरे में रोटी चुनते आज भी देखे जाते लोग
और झपटने को आतुर कुत्ते भी देखे जाते हैं।
स्वाभिमान के चिथड़े से निर्धनता ढंकते,
असमान के तारे गिनते भूखे-प्यासे, पढ-लिख कर जैसे-तैसे जीवन का बोझ लिये कांधे परदेश पलायन कर जाते हैं।
लोकतंत्र, प्रेस स्वतंत्रता, जन अधिकार या अर्थव्यवस्था सब कुछ सहमा-सहमा दिखता है,
जब गीदड़ दरबारी और शेर दरबान नज़र आता है।
कर्मयोगी के कर्म पर जब-जब दंभ का चाबुक चलता है,
प्रभु श्रीराम की अमृत वाणी,
“हंस चुगेगा दाना तुन का, कौआ मोती खायेगा” चरितार्थ नज़र आता है।
अरे! क्षुब्ध लिप्सा वालों, भ्रम जाल में जीने वालों
बोओगे जो शूल बताओ फूल कहां से लावोगे?
घर का भेदी बनकर कोई आज विभिषण नहीं बनेगा,
आंगन वाली नीति को कोई राजनीति नहीं कहेगा।
पहचानो अपने भारत को फिर देखो मुल्क पड़ोसी का,
गुलामी की जंजीर टूटी बस, आज़ादी तो शेष अभी है।
वर्तमान का सत्य है ये लुटेरों का इतिहास नहीं।
गर्व से मस्तक उंचा कर मैं लिख रही हूं गाथा
सिंहांसन का ताज नहीं, तपो भूमि का तप जगा है,
भारत-भू का सोया भाग्य जगाने प्रभु ने स्वयं अवतार लिया है।
आरक्षण, कालेधन के कोड़े से घायल
इस मृतप्राय सोने की चिड़िया को कहीं फ़कीर कहीं सन्यासी पालन हार मिला है।
वर्तमान तो जैसे तैसे कट जाता है कहीं किसी का,
किन्तु कल्ह उज्ज्वल है उत्कंठा आंखों में जगी है।
अपने उपवन के फूलों को अपना बागवान मिलेगा,
जन-जन में अरमान जगा है
जब तक सूरज-चांद रहेगा
आन- बान और शान तिरंगा
फहर-फहर फहराएगा
भारत जिंदाबाद रहा है,जिन्दाबाद रहेगा॥
जय हिन्द!🇮🇮🇳🙏
* मुक्ता रश्मि *
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