अनपढ़ माँ
लोग कहते थे
कि
तुम…
पढ़ना लिखना नहीं जानती।
बस,
ढोर-पशुओं को…
देख सकती थी…
पाल सकती थी…
खिला पिला सकती थी…
माँ!
तूने –
मुझे…..
कैसे लिख दिया!!
सोचता हूँ….
तुम –
मुझे….
जितना पढ़ सकी,
उतना…
कोई न पढ़ सका –
आज तक!
इश्वर भी नहीं!!!!
— कुमार अविनाश केसर
मुजफ्फरपुर, बिहार