अनजान लड़का
मम्मी,”कई दिनों से पापा सुबह ही बाहर कहाँ चले जाते हैं? रात को भी बहुत देर से लौटते हैं?” अनुभूति ने अपनी माँ से पूछा।
“जाएँगे कहाँ? एक बाप का फर्ज निभाना है। जाना तो पड़ेगा। लड़का कोई घर में बैठे-बैठे तो मिल नहीं जाएगा? खोजना पड़ता है, घर-परिवार और खानदान का पता लगाना पड़ता है।”
अब अनुभूति को समझ आया कि उसके पिता जी उसकी शादी करने के लिए योग्य वर की तलाश कर रहे हैं। वर की तलाश ऐसे तो पूर्ण होती नहीं है। उसके लिए तो जूते घिसने पड़ते हैं। जैसे आजकल के लड़कों को नौकरी की तलाश करने के लिए एक ऑफिस से दूसरे ऑफिस के चक्कर काटते हैं और जूते घिसते रहते हैं।
अभी कुछ दिन पहले ही जब अनुभूति को उसकी माँ ने फोन पर किसी लड़के से बात करते सुना था तो कहा था, “बेटा अनजान लड़कों से बात नहीं करते।हमारे खानदान की समाज में कुछ इज्ज़त है।”
“नहीं मम्मी, व्यापक हमारे साथ काॅलेज में पढ़ता था और बहुत अच्छा लड़का है।”
“वह तो ठीक है, पर है तो अनजान ही। तुम उसके घर परिवार के विषय में कुछ जानती हो? नहीं न।”
“मम्मी जैसा आप सोच रही हैं, वैसा कुछ भी नहीं है। हम बस अच्छे दोस्त हैं।”
बस, उसी दिन से अनुभूति की मम्मी ने उसके पापा को शादी के लिए लड़का खोजने के काम पर लगा दिया था।
अनुभूति ने जब अपनी शादी के लिए लड़का खोजने वाली बात माँ से सुनी तो उसने कहा- “मम्मी आप मुझे अनजान लड़के से बात करने से मना कर रही थीं और आज आप ही एक अनजान लड़के के साथ मुझे भेजने की तैयारी कर रही हैं। जब अनजान लड़के से बातचीत करना बुरा है तो शादी करना कहाँ तक उचित होगा।”
अनुभूति की माँ को उसकी बात सुनकर अपनी गलती का अहसास तो हुआ पर उन्होंने उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया।
अनुभूति सोचती है, माँ-बाप बनी-बनाई लीक पर ही चलना क्यों पसंद करते हैं ? लड़कों की इच्छा-अनिच्छा उनके लिए मायने रखती है लेकिन लड़कियों की नहीं।आखिर कब आएगा बदलाव लड़कियों के जीवन में।
डाॅ बिपिन पाण्डेय