अनजाने को ही चुन लिया _ गजल / गीतिका
जाना न परखा अनजाने को ही चुन लिया।
यही होगा मेरा अपना सपना भी बुन लिया।।
समझ नहीं पाए हम नवयुग नव पीढ़ी की यह बात।
हमारी संस्कृति में तो नहीं था यह कहां का गुण लिया।।
बहक रहे हैं जवानी की पहली ही पायदान पर।
छीन माता पिता का काहे को सुकून लिया।।
नहीं चलते रिश्ते ऐसे जिंदगी के सफर में ज्यादा।
मिटी तन की भूख और रिश्तो का ख़ून किया।।
जरा सोचिए समझिए फिर कदम उठाइए।
बिना सोचे ही कैसा यह पैदा जुनून किया।।
राजेश व्यास अनुनय