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9 Feb 2018 · 1 min read

अनजानी आस के पीछे

रेगिस्तान में पानी
तलास्ता है यह मन
पतझड़ में वसन्त के
आने की आहट है सुनता
बंजर धरती पर फूलो की खेती
करने को है अकुलाता
यही अकुलाहट
ऐसी ही प्रातीझा
उद्देलन इसी किस्म का
देता है जन्म उन उम्मीदों को
वैसी तस्वीरें रचता है
जिनका कोई आधार नही
जिनकी कोइ नियति नही
सपनो की दुनिया में
इच्छाओ की रेल गाडी
चलती ही जाती है
कोयले की
रेलगाड़ी की तरह
स्वप्न जागते है
जलते बुझते है
बिजली के लट्टूओ की मानिंद
येन जुगनुओं जैसे

Language: Hindi
379 Views
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