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11 Oct 2020 · 1 min read

अनजाना

हार गए हैं आईने भी इंसान को पहचानने में यहां
चेहरे अपनों के भी मुखोटों के पीछे गुम हो गए हैं

बंद रखे हैं खिड़की औ दरवाजे घरों के शहर में यहां
खामोश रहते लोग न जाने किस जहान के हो गए हैं

मिलता था हर ओर चैन और सुकून कल तक यहां
अपने थे जो लोग न जाने क्यों आज पराये हो गए हैं

दिख रहा है हर ओर चेहरा आज अनजाना सा यहां
शहर में जिंदादिल रहे लोग भी खुदगर्ज़ हो गए हैं

जज़्बात का ‘सुधीर’ उठ चुका है शायद जनाजा यहां
अपनापन और भाईचारा न जाने कहां गुम हो गए हैं..

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