अनकही प्रेम कहानी
सांझ ढल रही थी, सूरज अस्ताचल की ओर जाते हुए ऐसा लग रहा था मानो झील में स्नान करने उतर रहा हो। आसमान में लालिमां छाने लगी थी पक्षी कलरव गान करते हुए अपने-अपने घोंसलों की ओर लौट रहे थे। भीनी खुशबू लिए मंद मंद पवन झील में उठती शांत लहरें वातावरण को बहुत ही मनोरम बना रहे थे। राकेश झील में बनती बिगड़ती लहरें बड़े ध्यान से देख रहा था, बीच-बीच में एकाध पत्थर झील में फेंक देता था, ऐसा लग रहा था जैसे किंन्ही गहरी यादों में खोया हुआ हो। तभी किनारे पर बचाओ बचाओ की आवाज आई, राकेश का ध्यान टूट गया देखा तो एक युवती चिल्ला रही है एवं एक युवक भाग रहा है। राकेश पास ही था शो युवक को बाहों से पकड़ लिया, जो युवती का मंगलसूत्र लेकर भाग रहा था। तभी उस युवक ने चाकू निकाल राकेश के ऊपर चला दिया जो राकेश की बांह में लग गया, पकड़ ढीली हुई और चोर भाग निकला। झूमाझटकी में मंगलसूत्र जमीन पर गिर पड़ा जिसे राकेश ने बांह पकड़ते हुए उठा लिया, तब तक वह युवती भी राकेश के पास तेजी से आ गई। राकेश देखते ही विस्मित हो गया, अरे रजनी तुम, रजनी भी अवाक रह गई खून बहता देख तुरंत अपना दुपट्टा बांध दिया। तब तक रजनी के मिस्टर और बच्चे भी आ पहुंचे जो राकेश से पूर्व परिचित भी थे पहले दो तीन बार मुलाकात हो चुकी थी। चलो बहुत खून बह गया है जल्दी अस्पताल चलो सभी पास ही के अस्पताल पहुंच गए इंजेक्शन मरहम पट्टी कर डॉक्टर ने कहा जख्म गहरा है दो-तीन दिन निगरानी में भर्ती रहना पड़ेगा। सबने कहा ठीक है, रजनी ने मिस्टर से कहा आप बच्चों को लेकर जाइए, मैं इनके पास रुकती हूं आप रात में खाना ले आना। राकेश ने बहुत कहा आप लोग जाएं मैं रह लूंगा, पर वे लोग नहीं माने। रजनी के मिस्टर बच्चों को लेकर चले गए
राकेश पलंग पर थे रजनी स्टूल पर सिरहाने बैठी हुई थी, रजनी बोली आपने अपनी जान जोखिम में क्यों डाली? राकेश ने कहा, मुझे तो पता भी नहीं था, तुम हो? और यह जान चली भी जाए तो क्या? अरे आप कैसी बात कर रहे हो राकेश मेरे लिए तो आप अनमोल हैं। राकेश यही तो मैं भी कह रहा हूं, यह जान तुम से बढ़कर तो नहीं? दोनों एक ही कार्यालय में काम कर चुके थे, पुरानी यादों में खो गए, कभी शांत हो सोचने लगते कभी पुरानी कोई बात निकाल लेते, तब तक रजनी के मिस्टर खाने का टिफिन लेकर आ गए, बोले इसमें मेरा भी खाना है, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं, रजनी नहीं मैं ही इनके पास रुक जाती हूं, आप चले जाओ। रजनी के मिस्टर दोनों को खाना खिला घर आ गए। राकेश और रजनी साथ में गुजरे सात आठ साल की यादें जैसे सजीव हो गईं, रात कब गुजर गई पता ही नहीं चला, सुबह 6:00 बज गए थे, रजनी को आज दिल्ली जाना था 9:00 बजे फ्लाइट तय थी। राकेश को ऐसी हालत में छोड़कर जाने से, मन उदास हो रहा था। रजनी बोली राकेश तुम शादी कर लो, आखिर तुम शादी क्यों नहीं कर रहे हो? राकेश ने ठंडी सांस भरते हुए कहा मुझे तुम्हारे जैंसी दूसरी दिखी नहीं, अब इस जन्म में तो संभव नहीं है। क्या जमाना था कितना संकोच, न तुम कुछ कह सकीं, और न मैं। रजनी हां सही बात है, लड़की की जात तो आज भी वैंसी ही है, जहां मां बाप ने जिसके हाथ सौंप दी, वहीं जाना पड़ता है, पर तुम तो लड़के थे तुम क्यों कुछ नहीं बोल पाए? इतना संकोच भी किस काम का कि जीवन ही तबाह हो जाए। दोनों कुछ देर विचार करते हुए गंभीर मुद्रा में खो गए। तब तक दूर से ही मिस्टर की आवाज आई गुड मॉर्निंग राकेश जी कैसे हैं आप? ठीक हूं अब दर्द कम हो गया है। प्लीज यह दोनों चाय ले लीजिए, अभी 9:00 बजे फ्लाइट है, हां पता है रजनी ने बता दिया था। तीनों ने चाय पी इसके बाद चलने की आज्ञा मांगने लगे, राकेश जी अपना ख्याल रखिएगा, अब आप शादी कर लीजिए, अब हम शादी में ही आएंगे। अच्छा अब चलें रजनी राकेश एक दूसरे से जब तक दृश्य रहे, निहारते रहे।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी