अनंत करुणा प्रेम की मुलाकात
मंदिर के दरवाजे में,
माथा टेकने वह गया,
पूजने उस पत्थर की मूरत को,
कण-कण में जो था बसा,
पल भर के दिखावे को,
प्रसाद चढ़ा ने का एक ढोंग किया,
देख पंगत याचना वालोंं के,
दर में आकर लालच है मढ़ा,
देख न सका मिला था राह में,
भूखा जो हाथ पसारे था खड़ा,
समझ न सका उसकी महिमा को,
पहले ही प्रत्यक्ष भेंंट किया,
दौड़ लगा कर पहुँचा दर्शन को,
भूखा वैरागी आवाजें देता रहा,
बंद हुए थे चक्षु वहांँ पर,
जिनके खातिर दौड़ता गया,
अहम् नहीं था जिसके अंदर,
मन में प्रेम लिए हुए था खड़ा,
पल भर में हाथ जोड़ कर,
बाह्य मंदिर को प्रणाम किया,
झुका लिया शीश सामने,
निवला हाथोंं से दिया खिलाय,
मंद-मंद मुस्कुराये वैरागी,
आँखों में देख कहा बताए,
सुंदर प्रकृति को देख कर,
मन प्रसन्न कर हर क्षण किया आभार,
क्रिया कलाप कपोल मानव के,
हृदय तुम्हारा भर-भर जाए,
समझ रहे हो सत्य के अर्थो को,
ले रहे हो आनंद जगत का,
तृष्णा प्रेम से परे साधा है तुमने,
मन को करुणा से बांधा है हर क्षण में,
इतने रमे हो बुद्ध की भांति,
अंतर्मन की शांति से हर कण से जुड़े हो ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।