*अध्याय 5*
अध्याय 5
तर्क-वितर्क
दोहा
पर्वत सागर खाइयॉं, जग में कई प्रकार
रात और दिन से भरा, ईश्वर का संसार
1)
सास कटोरी देवी को वधु के विचार शुभ भाए
उत्तम संस्कार निश्चय ही इस नारी ने पाए
2)
किंतु सोचने लगीं न जीवन है वैरागी होना
नहीं अर्थ यह जीवन का संसार-सुधा को खोना
3)
जीवन का है अर्थ समन्वय अपना और पराया
जीवन का है अर्थ आत्मा रहे और भी काया
4)
अपने हित की सदा सोचते लोभी कहलाते हैं
किंतु नहीं जो अपना सोचें मूरख रख रह जाते हैं
5)
पुत्र परम आवश्यक जग में यह ही पार लगाता
लेता यह ही नाम पिता का यह ही रखता नाता
6)
एक पुत्र से क्या होता है दो ही अच्छे होते
चरण पिता के होते दो सुत दोनों मिलकर धोते
7)
बोलीं दृढ़ निश्चय यह धर “सुंदर विचार यह आया
किंतु बताऍं जग में अपना पुत्र कौन दे पाया
8)
लोक और परलोक सभी में सुत है बहुत जरूरी
मुक्ति न सुत के कहीं मिली है किसी पिता को पूरी
9)
भला एक से क्या होता दो भी थोड़े कहलाए
नाम पिता का लेते सुत जितने भी कम ही पाए
10)
वंश बढ़ेगा तभी पिता का नाम अगर सुत लेगा
इसीलिए सुत पिता जन्मता यश मुझको यह देगा
11)
अरे पुत्र यह मेरे सुत का ही है सदा रहेगा
नहीं आपको नहीं पिता को केवल पिता कहेगा
12)
चाहे जो मॉंगे मैं सब कुछ आज सौंप जाऊंगी
किंतु नहीं बेटे का बेटा हरगिज़ दे पाऊंगी
13)
पिता भिकारी लाल पुत्र यह राम प्रकाश अटल है
यही आज भी सत्य रहेगा सच ही यह भी कल है
दोहा
अपनेपन से चल रहा, जग का सब व्यवहार
इसमें सोचो क्या मिला, क्या हारा संसार
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