अधूरे रह गये जो स्वप्न वो पूरे करेंगे
अधूरे रह गये जो स्वप्न वो पूरे करेंगे
हम हासिए से ही फिर सब हासिल करेंगे
खूद को पेड़ बनते हुए हम ने है देखा
मौसमों का हर एक रंग हम ने है देखा
पतझड़ में झरे और वसंत में पल्लवित हुए
हमने बीज से बीज का एक सफ़र है देखा
हरे पत्तों से सूखे हुए पत्ते भी देंखे
पेड़ को हमने है नित बढ़ते देखा
उसी पेड़ की तरह हम भी बनेंगे
माटी में मिलेंगे और सृजन को सज्ज होंगे
संघर्ष कर फिर धरा से निकलेगे
अधूरे रह गये जो स्वप्न जो पूरे करेंगे
हम हासिए से ही फिर सब हासिल करेंगे
सुशील मिश्रा ‘क्षितिज राज ‘