अधूरे ख्बाव
मैं राजे-दिल सब-कुछ’ बताना चाहता हूँ|
मैं उस पर अपनी ‘जाँ’ लुटाना चाहता हूँ|
अभी तक जो अधूरे ख्बाव पूरे नही हुए,
मिलकर सभी वो अब जुटाना चाहता हूँ|
–धीरेन्द्र वर्मा
मैं राजे-दिल सब-कुछ’ बताना चाहता हूँ|
मैं उस पर अपनी ‘जाँ’ लुटाना चाहता हूँ|
अभी तक जो अधूरे ख्बाव पूरे नही हुए,
मिलकर सभी वो अब जुटाना चाहता हूँ|
–धीरेन्द्र वर्मा