अधूरी ग़ज़ल
….अधूरी ग़ज़ल….
तू ही मेरी अधूरी ग़ज़ल है
तू ही सपनों का ताजमहल है
खिला था मेरे दिल के तालाब में जो
तू ही वो खूबसूरत कमल है
कभी महफ़िल सी सजती थी जिसमे
वीरान तेरे बिना दिल का महल है
तेरी यादों में बरसी है पल पल
आज आंखे सजल इसलिये है
ये अधूरा है जीवन तेरे बिन
है नही मुझको जीना तेरे बिन
अब तो यादो के पहरे हटा दे
टूटे वादों का मंजर हटा दे
मौत के साथ मिल जाने को
अब तो जी चाहता है तेरे बिन
सच तो ये है मझे भूलने वाले
तू ही मेरी अधूरी ग़ज़ल है
तेरे बगैर लिख पाती नही चंद लाइन
यूं दम तोड़ती मेरी कलम है
अब किससे कहूँ हाल दिल का
हो गया हूं मैं “पागल” तेरे बिन
बस यही मेरी अधूरी ग़ज़ल है।
राहुल प्रकाश पाठक ,”पागल”