||अधूरी मुलाकात ||
“बेहिचक उन गलियों की ओर
आँखे फिर से खीच जाती है
आना जाना तेरा होता था जिनमे कभी
उन क़दमों के निशां में खो जाती है
पाने को एक झलक तेरी
बेताब रहती है अब भी आँखे ये
जीने को वो पल फिर से
सपने नए बुनती है आँखे ये
दर्द तेरा अब भी जिन्दा है
आके इसे मिटा जा तू
बुझते इस जीवन में फिर से
उम्मीद का चिराज जला जा तू |”