अधूरी और हताश उम्मीदें ..
नए साल से उम्मीदें हम क्या रखें ?
अधूरी तमन्नाएं पूछ बैठेंगी उससे ,
क्या हम मुकम्मल हो गईं है ?
बगलें झांकने लगेगी ,खुद से शर्मसार होंगी उम्मीदें ।
क्या देंगी तमन्नाओं को जवाब ?
कहेगी आंखों में आसूं भरकर ,मायूस होकर,
क्या हम मुकम्मल हो गई हैं ?