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12 Jun 2023 · 1 min read

अधूरा स्वेटर

वो स्वेटर बुनते बुनते
तू सो गयी थी ना माँ
वो स्वेटर फिर
कभी पूरा हो ना सका
शायद मैंने ही जल्दी दस्तक
दे दी आने की
तुझसे मिलने की हड़बड़ी में था ना माँ
अब इन उलझी सलाइयों में
उलझे – उलझे से फंदे
ये रेशे ज़िंदगी के
जुड़ते ही नहीं हैं
कुछ इस कदर उधड़े हैं धागे
इस अधूरे बदन के कपड़े
कहीं अब सिलते भी तो नहीं हैं
कहीं तो होगा एक दर्ज़ी
रोशनियों के तारों से सिल
पूरा कर दे अधूरे स्वेटर को
कहीं तो होगा ना माँ?
@संदीप

Language: Hindi
96 Views
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