अधूरा स्वेटर
वो स्वेटर बुनते बुनते
तू सो गयी थी ना माँ
वो स्वेटर फिर
कभी पूरा हो ना सका
शायद मैंने ही जल्दी दस्तक
दे दी आने की
तुझसे मिलने की हड़बड़ी में था ना माँ
अब इन उलझी सलाइयों में
उलझे – उलझे से फंदे
ये रेशे ज़िंदगी के
जुड़ते ही नहीं हैं
कुछ इस कदर उधड़े हैं धागे
इस अधूरे बदन के कपड़े
कहीं अब सिलते भी तो नहीं हैं
कहीं तो होगा एक दर्ज़ी
रोशनियों के तारों से सिल
पूरा कर दे अधूरे स्वेटर को
कहीं तो होगा ना माँ?
@संदीप